क्या हैं महिलाओं के अधिकार, जाने किस तरह से लड़े अपने हक के लिए

महिलाएं आज हर क्षेत्र में तरक्की कर रही है। जमीन से लेकर आसमान तक और अंतरिक्ष में भी उनकी छाप मौजूद हो चुकी है। जैसे-जैसे उनका कद बढ़ रहा है वैसे-वैसे वह अपने हक और उनसे जुड़े कानूनों के बारे में जानना चाह रही हैं। तो चलिए जान लेते हैं कि घर से लेकर दफ्तर में एक महिला के लिए क्या क्या अधिकार बनाए गए हैं। महिलाओं को लेकर पिछले कुछ दशकों में हमारी सोच में और हमारे नजरिए काफी सकारात्मक बदलाव आ गया है। लेकिन इन बदलाव का मतलब यह नहीं कि पुरुष और महिलाओं को बराबरी पर देखा जाता है। क्योंकि यह समानता लाने की लड़ाई बहुत ही लंबी है। दुनिया में ऐसे कई देश है जिसमें आज भी महिलाएं अपने हक और अधिकार के लिए लड़ रही हैं। इन देशों में अपना भारत भी शामिल हो रखा है। लेकिन इससे भी बड़ा दुख तो यह है कि आज भी बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें अपने अधिकारों और हक के बारे में सही से नहीं पता है। लेकिन महिलाओं को अपने अधिकारों और हक के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। तो चलिए जान लेते हैं कि महिलाओं के क्या क्या अधिकार होते हैं।
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गोपनीयता अधिकार
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बलात्कार की शिकार हुई महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कर सकती है। इसी के साथ साथ जब मामले की सुनवाई हो रही हो तो उसको किसी भी व्यक्ति की उपस्थिति की जरूरत नहीं होती है। एक महिला ऐसे सुविधाजनक स्थान पर सिर्फ एक पुलिस अधिकारी और महिला कॉन्स्टेबल के साथ अपना बयान रिकॉर्ड करवा सकती है। जहां पर कोई भी भीड़ भरा माहौल ना हो, और जिस जगह किसी चौथे इंसान की बयान की सुनने की कोई भी आशंका ना बची हो। पुलिस अधिकारियों को एक महिला की निजता बनाए रखना बेहद जरूरी होता है। साथ ही साथ यह भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कि बलात्कार पीड़िता का नाम और पहचान कभी भी सार्वजनिक नहीं होना चाहिए।
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निशुल्क कानूनी सहायता अधिकार
हमारे भारत में जब भी कोई महिला अकेले पुलिस स्टेशन में बयान लिखवाने जाती है तो कई बार ऐसा हो सकता है कि आप का बयान तोड़ मरोड़ कर लिखा जा सकता है। यहां तक कि कई ऐसे मामले भी होते हैं जिनमें महिलाओं को अपमान भी सहना पड़ता है। इसीलिए अगर आप एक महीना है तो आपको इस बारे में पता होना चाहिए कि आपको भी कानूनी सहायता लेने का पूरा अधिकार होता है। आप कानून से इसकी मांग कर सकती हैं। यह आपके राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह आपको पूरी कानूनी सहायता प्रदान करें।
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देर से शिकायत दर्ज अधिकार
अगर आपके साथ बलात्कार या फिर छेड़खानी हुई है तो इस घटना को भले ही काफी समय हो गया हो लेकिन पुलिस एफ आई आर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती है। बलात्कार किसी भी महिला के लिए एक भयावह घटना होती है। इसीलिए उसका सदमे में चले जाना और तुरंत इसकी रिपोर्ट ना लिखवाना बहुत ही स्वभाविक है। एक महिला को अपनी सुरक्षा और प्रतिष्ठा से भी डर लग जाता है। जिस वजह से सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला किया है कि बलात्कार होने के बाद भले ही कितने समय के बाद भी एफ आई आर दर्ज करवाई जाए इससे फर्क नहीं पड़ता है, यह मामला दर्ज किया जाएगा।
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सुरक्षित कार्यस्थल अधिकार
अधिक से अधिक महिलाएं सार्वजनिक क्षेत्रों में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं, इसी वजह से उन्हें प्रोत्साहन भी मिलता है. किस कारण से यह सबसे अधिक प्रासंगिक कानूनों में से एक माना जाता है। हर ऑफिस और कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न शिकायत समिति बनाना एक नियोक्ता का कर्तव्य होता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी एक दिशा निर्देश के मुताबिक यह बेहद ही जरूरी है कि समिति का नेतृत्व एक महिला को करना चाहिए और सदस्य के तौर पर उसमें 50 फ़ीसदी महिलाएं भी शामिल रहनी चाहिए। साथ ही साथ समिति के सदस्यों में एक महिला कल्याण समिति की भी होनी चाहिए। इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है कि आप वहां के स्थाई कर्मचारी हो या नहीं।
यहां तक कि यह भी फर्क नहीं पड़ता है कि इंटर्न या फिर पार्ट टाइम कर्मचारी, यहां तक कि ऑफिस में आने वाली कोई भी महिला या ऑफिस में साक्षात्कार के लिए आई हुई महिला के साथ उत्पीड़न किया गया है तो वह भी इस समिति के समक्ष शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। अगर कोई महिला ऑफिस में हिरण का शिकार होती है तो वह इस घटना के 3 महीने के भीतर इस समिति को लिखित रूप में घटना के बारे में शिकायत दे सकती है। अगर आपकी कंपनी में भले ही 10 या फिर अधिक कर्मचारी हो और उनमें से आपकी कंपनी में सिर्फ एक ही महिला हो तब भी आपको इस समिति का गठन करना आवश्यक हो जाता है। अगर आप किसी परिस्थिति में आपको ऐसा लगता है कि यह समिति मौजूद नहीं है या फिर इस समिति से आपको कोई भी सहायता नहीं मिल पाएगी तो आप सीधे जाकर जिला स्तर पर मौजूद स्थानीय शिकायत समिति से संपर्क करके शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। अगर आप यह शिकायत करवाने में असमर्थ है तो आप की जगह कोई दूसरा व्यक्ति भी यह शिकायत दर्ज करवा सकता है।

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जीरो FIR अधिकार
महिला को ईमेल या फिर पंजीकृत डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करवाने का पूरा अधिकार होता है। अगर किसी कारण से वह पुलिस स्टेशन नहीं जा पा रही है तो मैं पंजीकृत डाक के माध्यम से लिखित रूप में शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। यह शिकायत पुलिस उपायुक्त या पुलिस आयुक्त के स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को संबोधित की गई हो तो यह शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। अगर कोई बलात्कारी पीड़िता जीरो एफ आई आर अधिकार के तहत शिकायत दर्ज करवाना चाहती है तो वह करवा सकती है। कोई भी ऐसा पुलिस स्टेशन यह कहकर एफ आई आर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकता कि वह क्षेत्र उनके दायरे में नहीं आता है।
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घरेलू हिंसा सुरक्षा अधिकार
हमेशा महिलाओं को यही सिखाया जाता है कि कुछ भी हो जाए लेकिन शादी नहीं टूटनी चाहिए। यह विचार महिलाओं के अंदर इस जहन में जमा कर दिया जाता है कि वह कई बार बिना आवाज़ उठाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती रहती हैं।आईपीसी की धारा 498-ए दहेज संबंधित हत्या की निंदा करने पर बनाई गई है। इसके साथ साथ दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 में न केवल दहेज देने या लेने, बल्कि दहेज मांगने के लिए भी दंड के लिए प्रावधान बनाए गए हैं। अगर इस धारा के तहत एक बार इस पर एफ आई आर दर्ज हो गई तो इसे गैर जमानती अपराध बना सकती है। इस धारा के तहत एक बार इस पर दर्ज की गई एफआईआर इसे गैर-जमानती अपराध बना देती है। अगर शारीरिक, मौखिक, आर्थिक, यौन संबंधी या अन्य किसी प्रकार का दुर्व्यवहार किसी महिला के साथ होता है तो धारा 498-ए के तहत दर्ज किया जाता है। IPC की इस धारा के अलावा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह संबंधित मामलों में पूर्ण रूप से सहायक है।
7.इंटरनेट सुरक्षा अधिकार
अगर किसी ने भी आपकी मर्जी के बिना इंटरनेट पर आपकी तस्वीर है वीडियो अपलोड की तो यह अपराध माना जाएगा। किसी भी माध्यम से इंटरनेट या व्हाट्सएप पर शेयर की गई आपत्तिजनक या फिर खराब फोटो या वीडियोस किसी भी महिला को सदमे में डाल सकती है। जिस भी वेबसाइट ने आप की तस्वीरें या वीडियो प्रकाशित की है आप उस वेबसाइट से सीधे संपर्क करें।यह वेबसाइट कानून के अधीन होती हैं और इनका अनुपालन करने के लिए भी वह बाध्य होती हैं। आप न्यायालय से एक इंजेक्शन आदेश प्राप्त कर सकती हैं, जिससे आगे चलकर आपकी तस्वीर और वीडियोस को प्रकाशित ना किया जा सके। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 67 और 66-ई के तहत बिना किसी भी व्यक्ति की अनुमति के उसके निजी क्षणों की तस्वीर खींचना या फिर प्रकाशित या प्रसारित करने को पर निषेध लगाती है। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-सी के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर को बिना अनुमति लिए खींचना या फिर कहीं पर अपलोड करना, इसे अपराध माना गया है।
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समान वेतन अधिकार
हर महिला को यह अधिकार है कि उसे पुरुषों के समान वेतन मिलना चाहिए। समान पारिश्रमिक अधिनियम,1976 के तहत इस कानून को लागू किया गया है। इस कानून से वसेवा शर्तों के तहत महिलाओं के खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव करना गलत माना गया है।
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कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कानून
Medical Termination Of Pregnancy Act, 1971मानवीयता और चिकित्सा के आधार पर पंजीकृत चिकित्सकों को गर्भपात का अधिकार मुहिया कराती है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम,1994 गर्भधारण से पहले या उसके बाद लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। यही कानून कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रसव होने से पहले ही लिंग निर्धारण से जुड़े टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगा देता है। भू्रण हत्या को रोकने में यह कानून उपयोगी साबित होता है।