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#1 मां, बेटी ,बहू ,बहन और भी बहुत से रिश्ते होते हैं एक आत्मजा के पर क्या हमारा समाज इन्हें चाहता है ?

मां, बेटी ,बहू ,बहन

हम बेटी को जन्म देना चाहते हैं अगर कोई जन्म दे भी दे तो क्या हम उस लड़की को अभिशाप नहीं समझते क्या उस मां को समाज की अकोष को नहीं सहना पड़ता? एक लड़के के जन्म पर जो खुशी दिखाई जाती है वह लड़की का हक नहीं हम लड़के की जन्म पे मुंह मीठा कराया करते हैं और वही एक लड़की के जन्म पर आंसू गिराए करते हैं ऐसा लगता है किसी की जन्म नहीं मृत्यु हो गई हो इस प्रकार यह समाज स्वागत करती है लड़कियों का शोक और दुख साफ नजर आता है।

बदलते दिन हालत वही है , एक लड़की की कहानी की शुरुवात वही है –

जी हां, दिन बदलता है साल बदलती है पर क्या हम और हमारा समाज बदलता है क्या हमारी लड़कियों के प्रति सोच बदलती है? एक लड़की की सच्चाई का सामना करवाती हूं मैं चलिए आज पूरी दुनिया के अस्तित्व से मिलाती हूं एक लड़की हमारे लिए कितनी जरूरी है यह दिखाती हूं। मैं मुझे पढ़ रहे लोगों से निवेदन करती हूं ” स्त्री की भावनाओं को सर्वोपरि रखें”

मां, बेटी ,बहू ,बहन और भी बहुत से रिश्ते होते हैं एक आत्मजा के पर क्या हमारा समाज इन्हें चाहता है ?
मां, बेटी ,बहू ,बहन और भी बहुत से रिश्ते होते हैं एक आत्मजा के पर क्या हमारा समाज इन्हें चाहता है ?

लड़की वो होती है जो इस संसार को चलाती है फिर हम इसे ही अभिशाप क्यों समझते हैं इसे यह एहसास क्यों दिलाते हैं कि यह सिर्फ एक अभिशाप है अगर दुनिया में लड़कियां ना हो तो दुनिया की सारी गतिविधियों पर पूरन बिराम लग जाए मतलब कि सब कुछ समाप्त हो जाए ,लड़की वह होती है जो लोगों की खुशी के लिए अपनी खुशियों का गला घोट देती है लड़कियों की सच्चाई यह है जो अपनों की मुस्कुराहट के लिए खुद की आंसू तक को छुपा लेती है और समाज की सच्चाई यह है कि लड़की की मुस्कुराहट तक को देखना नहीं चाहते!

आज फिर रोई एक मां उसे किस बात का गम सताया है,
उसने तो मां बनने का सौभाग्य पाया है,
फर्क सिर्फ इतना है कि उसने बेटी को जन्माया आया है,

आज फिर एक स्त्री ने दुनिया में जन्म पाया है!

मैं उस देश की बात कर रही हूं जहां हर चीज के लिए देवियों को पूजा जाता है “धन और संपत्ति के लिए लक्ष्मी मां” “विद्या के लिए सरस्वती मां” “शक्ति और सफलता के लिए मां दुर्गा को पूजते हैं” और जब इसी देवी को दुनिया में लाने की बारी आती है तो हम अभिशाप समझते हैं

यह हमारी मानसिकता और यही है हमारी सच्चाई कड़वी है पर सच भी है देश जब पुरुष प्रधान है तो स्त्रियों की पूजा क्यों यह जवाब आज तक कभी मिल ही नहीं पाया क्योंकि कभी किसी ने ऐसे जाने की कोशिश ही नहीं की और यही वजह है कि आज मैं भी आपको यह नहीं बता सकती और शायद इसका उत्तर कभी कोई भी ना पाए।

लड़कियों के बिना क्यों जग सुना!

लड़कियों को उपभोगता और लड़कों को उत्पादक बोलने वाले लोग को मैं यह बताना चाहती हूं कि असली उत्पादक तो लड़कियां हैं और उपभोक्ता तो लड़के हैं अगर लड़की लड़के की उत्पाद ना करें इन्हें संसार में ना लाए तो यह संसार का उपयोग कैसे करेंगे क्या लड़के ही संसार को चलाने में सक्षम है लड़कियां उपभोक्ता ही है तो बिना इनके संचालन संभव क्यों नहीं मैं पूछती हूं लड़कियों से भागने वाले हर एक इंसान से क्या यही कारण है क्योंकि वह इनकी धन का उपभोग करेंगे और अगर लड़का आया तो वह उत्पाद करेगा।

“लड़की और लड़के” में फर्क करने वाले बस लड़का को चाहने वाले जिस दिन दुनिया में यह लड़कियां ना रही तो वह किसी भी बच्चे की किलकारी तक सुनने को तरस जाएंगे बाप के सुख को भूल जाएंगे और आत्महत्या तक के लिए मजबूर हो जाएंगे यह है लड़कियों की शक्ति ऐसी शक्ति के साथ भी इसे अभिशाप होने का सामना करना पड़ता है!

किसी और से तो नहीं मां पर तुझसे पूछती हूं
मुझे दुनिया में ना लाने की वजह बता दे,
गरब में मारने कि सजा क्यों देती है दुनिया
इसकी तू भेद बता दे,

क्या मेरी शादी में लगने वाले दहेज कि डर,
या फिर इस दुनिया की घिनवनी नजर,
क्यों भोझ बन गई है बेटियां बता दे मा तू ही बता दे,
इस जवाने ने तो केवी हमसे दिल का रिश्ता जोड़ ही नहीं, हम तो बस अपने अरमानों के लिए आजमाया है कठपुतली बना के बस नचाया है,

कभी इस रिश्ते कभी उस रिश्ते बस बधना ही शिखाया है,
आखिर इस जवाने ने हमारी जनम पे आशु जो बहाया है,
किसी और से तो उम्मीद ही नहीं मा तू ही बता दें क्यों हमें अभिश्राप बनाया है!

एक तरफ हमारा धर्म यह कहता है कि कन्यादान से पूर्ण की प्राप्ति होती है बड़े ही सौभाग्य से अवसर प्राप्त होता है फिर हम कन्या भ्रूण हत्या क्यों करते हैं इससे होने वाली पाप का भय नहीं हमें क्या हमें उस देवियों का भी डर नहीं जिन्हें हम पूजते हैं नवजात जान दुनिया में नहीं आई होती है उसे उसकी जिंदगी देने से पहले ही क्यों मार देते हैं

सिर्फ इसलिए कि अगर वह इस दुनिया में आ जाएगी तो उसके शादी पर कुछ दहेज देने पड़ जाएंगे या फिर समाज की गंदी नजर के वजह से आखिर एक मां अपनी औलाद को कोख में मारने के लिए मजबूर क्यों हो जाती है समाज में नारियों पर हो रहे अत्याचार की डर से क्या वह अपनी तरह जीवन अपनी बेटी को नहीं देना चाहती वह नहीं चाहती कि वह अभिशाप बनकर इस दुनिया में आए अगर ऐसा है

तो एक ना एक दिन यह समाज बेटी के जन्म पर नहीं बेटी के लिए रोएगा।
आज मार लो कल रोओगे, “अभीशाप” नहीं मै “सवगात” हूं

संसार की हर एक लड़की यही कहना चाहती हैं वो आत्मजा है अब्ला नहीं वो ईश्वर की बनाई हुई स्वगात है अभिशाप नहीं “नारियों को अभिशाप ना समझे” ये संसार की अस्तित्व हैं।

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