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किसान अधिक पैदावार के लिए लगाएँ धान की नई विकसित किस्म स्वर्ण शक्ति

धान की उन्नत विकसित किस्म स्वर्ण शक्ति की खेती

भारत में खरीफ सीजन में धान की खेती मुख्य रूप से की जाती है परंतु दुसरे फसलों की अपेक्षा धान की फसल को बहुत अधिक पानी की जरूरत होती है। परम्परागत तरीक़े से धान की खेती करने पर एक किलोग्राम चावल उत्पादन के लिए लगभग 3000 से 5000 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है। जिससे लगातार भूमिगत जलस्तर नीचे जा रहा है। धान की खेती में पानी को बचाने के लिए सरकार धान की सीधी बुआई पर ज़ोर दे रही है, जिसके लिए किसानों को प्रोत्साहन स्वरूप अनुदान भी दिया जा रहा है। 

सीधी बुवाई के लिए धान की खेती के लिए सही प्रजाति का चयन करना जरुरी है, जो सूखे की स्थिति का भी सामना कर सके। इसके अलावा उस किस्म से किसान अधिक पैदावार भी प्राप्त कर सकें। कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा एक ऐसी ही किस्म “स्वर्ण शक्ति” विकसित की गई है जो किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। ‘स्वर्ण शक्ति धान’ सीधी बुवाई के लिए उपयुक्त है। यह कम पानी में या फिर असिंचित क्षेत्र में भी आसानी से उपजाई जा सकती है। इसके साथ ही इस प्रजाति से धान का उत्पादन दूसरी धान किस्मों की अपेक्षा अधिक है।

किसान इस तरह करें स्वर्ण शक्ति धान की खेती

भूमि एवं बुआई की तैयारी 

सर्वप्रथम यथासंभव गर्मी के मौसम में खेत की एक गहरी जुताई किसानों को करनी चाहिए, जिससे खरपतवार, कीट और रोगों के प्रबंधन में मदद मिलती है। धान की सीधी बुआई द्वारा खेती करने के लिए एक बार मोल्ड हल की मदद से जुताई करके फिर डिस्क हैरो और रोटावेटर चलाएं। ऐसा करने से पूरे खेत में बीजों का एक समान अंकुरण, जड़ों का सही विकास, सिंचाई के जल का एक समान वितरण होने से पौधों का विकास बहुत अच्छा होगा और अच्छी उपज हासिल होगी |

बीजों का चयन एवं इसका उपचार 

बीजों के एक समान और स्वस्थ अंकुरण के लिए आनुवांशिक रूप से शुद्ध और स्वस्थ बीजों का उपयोग करना चाहिए। बीज जनित रोगों को नियंत्रण करने के लिए बुआई से पहले बीजों का स्यूडोमोनास फ्लूसेंस से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अथवा बाविस्टिन से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करना चाहिए |

फसल की बुआई 

स्वर्ण शक्ति धान की बुआई का सर्वोत्तम समय जून के दुसरे सप्ताह से लेकर चौथे सप्ताह तक है | इस धान की सीधी बुआई हाथ से अथवा बीज–सह–उर्वरक ड्रिल मशीन द्वारा लगभग 25–30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की बीज दर के साथ 3–5 से.मी. गहरी हल–रेखाओं में 20 से.मी. की दूरी पर पंक्तियों में की जाती है |

पोषक तत्व प्रबंधन 

इस प्रजाति के पौधों के उचित विकास के लिए प्रति हैक्टेयर 120 किलोग्राम नाईट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है। इसमें से बुआई के लिए भूमि की अंतिम तैयारी के समय फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी खुराक और नाईट्रोजन उर्वरक की केवल एक तिहाई मात्रा को खेत में मिला देना चाहिए। शेष नाईट्रोजन उर्वरक को दो बराबर भागों में बांटकर, एक भाग को कल्ले (टिलर) आने के समय (बुआई के 40–50 दिनों बाद) तथा दुसरे भाग को बाली आने के समय (बुआई के 55–60 दिनों बाद) देना चाहिए |

सिंचाई प्रबंधन

स्वर्ण शक्ति धान की खेती बिना कीचड़ एवं बिना जल जमाव किए सीधी बुआई करके की जाती है। यह सूखा सहिष्णु एरोबिक प्रजाति है, इसलिए यदि फसल अवधि के दौरान वर्षा सामान्य हो और सही रूप से वितरित हो तो फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। हालंकि सूखे की स्थिति में फसल को विकास की महत्वपूर्ण अवस्थाओं जैसे बुआई के बाद, कल्ले निकलते समय, गाभा फूटते समय, फूल लगते समय एवं दाना बनते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखना चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन 

धान की सीधी बुआई करने पर खेतों में खरपतवार का प्रकोप काफी बढ़ जाता है, जिसमें मुख्यत: मोथा, दूब, जंगली घास, सावां, सामी इत्यादि हैं | इन सभी खरपतवारों के उचित नियंत्रण के लिए बुआई के 1–2 दिनों के अंदर ही पेंडीमेथलीन का 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व/ हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए | इसके उपरांत ही बिस्पैरिबक सोडियम का 25 ग्राम सक्रिय तत्व/ हैक्टेयर की दर से बुआई के 18–20 दिनों के अंदर छिड़काव करना चाहिए | यदि आवश्यक हो तो बुआई के 40 दिनों बाद और 60 दिनों बाद हाथों से अथवा यंत्रों द्वारा निराई की जा सकती है |

रोग एवं कीट की रोकथाम 

भूरा धब्बा रोग की रोकथाम के लिए बुआई से पहले 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बाविस्टिन अथवा कार्बेन्डाजिम के साथ बीज का उपचार करें। झोंक रोग की रोकथाम के लिए कासुगामायसीन 3 एसएल का 1.5 मिली. प्रति लीटर की दर से पानी का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए | पर्णच्छद अंगमारी रोग को नियंत्रण करने के लिए बैलिडामाइसीन 3 एल का 2 मिली. प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए | भूरा माहूं लगने की स्थिति में क्लोरपाइरीफांस 20 ई.सी. का 2.5 लीटर प्रति हैक्टेयर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. का 0.5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव करें | 

अगर तनाछेदक खेत में दिखाई दे तो थियोक्लोप्रिड 21.7 एससी का 500 मिली. प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव अथवा कार्टाप 50 डब्ल्यूपी का 1 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए | पत्ती लपेटक की रोकथाम के लिए खेत में किवनालफाँस 25 ई.सी. का 1.6 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें | दीमक की रोकथाम के लिए बीजों का क्लोरपाइरीफाँस 20 ई.सी. के साथ 3.75 लीटर प्रति हैक्टेयर किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें | 

स्वर्ण शक्ति धान की अन्य विशेषताएं 

इस प्रजाति की खेती सीधी बुआई द्वारा बिना कादो (कीचड़) एवं बिना जल जमाव वाली वायवीय मिट्टी में करते हैं। धान की यह प्रजाति कम अवधि वाली (115- 200 दिन), अर्द्धबौनी, उच्च उपज (4.5–5.0 टन/हैक्टेयर) एवं बहुतनाव सहिष्णु स्वभाव की है। इसके साथ ही साथ इस प्रजाति में उच्च – गुणवत्ता एवं सूक्ष्म पोषक तत्व मुख्यत: जिंक (23.5 पीपीएम) और लोहा (15.1 पीपीएम) भी प्रचुर मात्रा में होते हैं।

स्वर्ण शक्ति धान से उत्पादन 

स्वर्ण शक्ति धान की उपज 4.5 से 5.5 टन प्रति हैक्टेयर तक पाई गई है | एरोबिक परिस्थिति में धान की यह प्रजाति 5.0 टन प्रति हैक्टेयर की औसत उपज देती है | इसके साथ ही यह प्रजाति सूखे को भी झेलने में सक्षम है | मध्यम से गंभीर सूखे की स्थित में इस प्रजाति से 2.5 से 3.5 टन प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्राप्त होता है |

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