लड़की होना क्या अफसोस है या एक बड़ी गलती है?

लड़की होना क्या अफसोस है या एक बड़ी गलती है?

लड़की होना क्या अफसोस है या एक बड़ी गलती है?

देख के सीटिया बजाते हो, तुम ये क्या दिखाते हो हर वक्त, एक अबला होने का अहसास दिलाते हो, जब जी करे किसी की इज्जत से खेल जाते हो, अपने मर्द होने का ताकत दिखाते हो, क्या लड़की होने का अफसोस करवाना ही समाज के बस में है?

लड़की होना क्या अफसोस है या एक बड़ी गलती है?
लड़की होना क्या अफसोस है या एक बड़ी गलती है?

लड़की हु ये कहने से डरती हु क्या पता कब मैं भी बाकियो की तरह इस पुरुषप्रधान समाज के भेट चढ़ जाऊ ? क्या पता किस दिन रोड पे जली हुई मिल जाऊ ।

क्या मत करो, ज्यादा मत बोला करो, किसी से लड़ाई मत करो, चुप रहना सीखो, दूसरे के घर जाना है तुम्हे, छोटे कपड़े मत पहनो, लोगो की नजर पड़ेगी, ज्यादा सजा नही करो।

मैं पूछती हु क्यों आखिर क्यों सारे बदलाव सारी रोक टोक हमपे ही क्यों? लड़की है इसलिए बस हम ही बदले क्या ये समाज बीतते समय के साथ नही बदलेगा?

कहि कुछक्यू हो भी जाए तो ये लोग उस हवस की शीकार लड़की की ही गलती निकलते है। उतनी रात बाहर ही क्यों गई ये कहके बात टालते है ।

लड़कियो की आबरू से खेल तो बहुत पुराना है पर मैं समझ हीन इस बात से हु की ये रुकने का नाम नही ले रहा। इस दर में बढ़त ही आ रही है। 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार हर 15 मिंट पे 1 रेप होता है ओर ये दर दुगनि रफ्तार से बढ़ रहा है।

लडकिया खुले आसामान में सास तक लेने से कतराने लगी है सिर्फ इन हवसीयो की वजह से उनको आजादी नही मिल पा रही,

” आज पंख है तो उड़ने दो न मुझे
मैं भी तो उड़ना चाहती हु
मेरे भी कुछ सपने है
उसमे जिना चाहती हु
कर पूरे अपने सपनो को
खुद की पहचान बनाना चाहती हु ।”

जी हा, आखिर लड़कियो को ही क्यों रोकते है? उनके सपनो का मजाक उडा के बस ये ही क्यों कहते है लड़की है बनाना तो खाना ही है, ये बडे बड़े सपने न देख ।

क्या लड़की को भगवान ने कोई अधिकार नही दिया या फिर इन धोंगियो ने छिन लिया। हर वक्त ये ही सोचना अब लड़की बड़ी हो रही है जल्दी से शादी करवा दो बस बोझ हल्का हो जाए ।

आखिर लड़कियो को बोझ बनाया किसने, बेटी जवान हो रही है, बस शादी हो जाए सारी चिंता खत्म। आखिर ये चिंता थी किस बात की बेटी की या उसके इज्जत की । ये चिंता आई क्यों ?

सिर्फ इस समाज की डर से की हमारी बेटी भी किसी दिन बलात्कारियो के द्वारा रौंद दी जाएगी और हम कुछ नही कर पाएंगे । आशु तो बहाएंगे 4 या 5 दिन मोमबतियां, हाथो में इंसाफ का बना चित्र लेकर तो कुछ लोग निकलेंगे ।

पर क्या ये आज तक इंसाफ दिला पाए? नही ना क्योंकि हमारे देश की आधी आबादी को लगता है गलति लड़की की ही है ।

और सच कहु तो मुझे घिन आती है ऐसे लोगो से और आशु आते है जब किसी महिला के मुह से इन बातो को सुनती हु, उनकी तर्क सुनती हु, लड़कियो की गलती निकालने के लिए दिए गए बयान सुनती हु,

आखिर सच क्या है मैं पूछती हु उस लड़की की गलती क्या है जो न चल सकती ह न बोल सकती है 6 महीने की बच्ची जिसने दुनिया का मतलब नही जाना उसके साथ क्यों होता है?
उसकी गलती क्या है?

माँ बनने में जो दर्द होता है ना, वो दर्द एक पुरुष को पूरी जिंदगी में कभी ना हो, पर कमजोर लडकिया बताई जाती है ।

डरी हुई हमेशा से दिखाई जाती है । बहुत लोग ये कहते है लड़कियो को कमजोर समझ के लड़के उनके साथ गलत करते है, तो जरा सोचिये जब बचपन से ही हम और आप अपनी बेटियो को दुनिया दिखाने से डरते है,

क्यु? उन्हें निर्भर तो बनाते है लेकिन बस घर चलाने के लिए । उनको कभी निडर नही बनाया तो क्या वो इन दरिंदो को देख सहमे ना, उसमे भी हम लड़की को ही दोषी क्यों माने, कपड़ो को दोष देते हुए अपने नुक्स निकालते हो तो, औरतो के साथ गलत क्यों होता है।

50 साल की औरते क्या खुद लड़को को लुभाती है, गलत करने के लिए ।

और अगर शादी करना ही इलाज है तो शादीसुदा औरतो के साथ दरिंदगी क्यों?

यहाँ लड़को की भी मानसिकता समझ नही आती । खुद की माँ बहन को कोई आँख उठा के भी न देखे और दुसरो की बहन के लिए कब ये दरिंदे बन जाते है पता ही नही चलता।

दिनदहाड़े लड़कियो को छेड़ना उसके इज्जत के साथ खेलना इनकी नियत बन जाती है । आखिर क्या करे बेटियो के माँ बाप की उनकी बेटी सड़को पे भी नही निकल पाती ।

एक स्त्री के कोख से जन्म ले कर, दूसरी स्त्री से खेलने आये थे,
यू पूरे शरीर से खुलेआम पर्दा हटाये थे, जिस्म को नोचने में भी जरा ना हिचकिचाए थे, बलात्कार कर उस अबला को सरेआम जिंदा जलाये थे!

पिजड़े में बन्द करके ही रखना है तो हम जन्म ही क्यों ले ? इस संसार को चलने ही क्यों दे? जब हम सुरक्षित ही नही है तो संसार को ऐसे दरिंदे ही क्यों दे? बेटियो से भागति है दुनिया तो हम बेटो को जन्म ही क्यों दे?

ये सम्भव तो नही लगा लेकिन अगर ये अपराध लड़कियो पे अत्याचार नही थमा तो ये और दुगनि रफ्तार पकड़ेगा और एक दिन हम सब अपनी बच्चियो को जन्म देने से डरेंगे और इस इस्थिति में इसअत्याचार पे पूर्णविराम लग ही जाएगा ।
लेकिन संसार को चलना सम्भव नही हो पायेगा,

ऐसे दरिंदे भी तो हम से ही बनते है माँ होकर हम कहि न कहि तो कमी करते है जो बच्चे ऐसे संस्कार से किसी की जिंदगी खराब कर देते है ।

तो चलिए आज हम सब प्रतिज्ञा ले की हम आने वाली पीढ़ियो को ऐसी राह पे नही जाने देंगे, फिर से किसी की बेटी को जलाने नही देंगे, फिर किसी की बेटी के बदन से कपड़ा हटाने नही देंगे, अपनी देश की किसी भी बेटी की इज्जत जाने नही देंगे,

बस कहने के लिए ही नही बल्कि एक समान हक जताने देंगे ।।