हमारे देश भारत में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है. Ruma Devi क नाम आपने भी सुना होगा.नारियों को सिर्फ देवी का दर्जा ही नहीं मिला है बल्कि हर घर में बेटियों बहुओं को देवी के जैसा पूजा भी जाता है. लेकिन कई ऐसे शहर है जहां अभी भी बेटे बेटी में फर्क होता है. ऐसे ही शहर में आता है राजस्थान और हरियाणा का नाम.
राजस्थान में कई ऐसे जगह आपको देखने को मिल जाएंगे जहां बेटियां रूढ़िवादी परंपराओं में जकड़ी रहती हैं. उन्हें अपने सपने पूरे करने का हक नहीं मिलता. लेकिन ऐसे ही जगहों में कुछ ऐसी बेटियां भी होती है जो इन परंपराओं को तोड़कर अपने सपने पूरा करने के लिए अपने हक की लड़ाई लड़ती है. वह सिर्फ अपने हक के लिए लड़ाई नहीं लड़ती बल्कि हर मुश्किलों का सामना करते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच कर दिखाती है.

आज हम आपको राजस्थान की एक ऐसे ही बेटी के बारे में बताने वाले हैं जिसके बारे में सुनकर आप भी गर्व महसूस करेंगे. वैसे तो इस बेटी को भी अपने सपने को पूरा करने के लिए काफी ज्यादा संघर्ष करना पड़ा लेकिन इस बेटी ने कभी हार नहीं माना. आज हम आपको बताने वाले हैं राजस्थान के बाड़मेर की Ruma Devi के बारे में.
राजस्थान के बाड़मेर में जन्मी शिल्पकार रूमा देवी भले ही आज चिर परिचित नाम हों, मगर उनका संघर्ष आसान नहीं रहा. भारत सरकार की नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित रूमा देवी ने बताया कि जब उन्होंने एम्ब्रॉयडरी शुरू की तो परिवार का सपोर्ट भी नहीं मिला. उन्होंने अपने परिवार से अलग कमरा लेकर काम शुरू किया.
जब वह बाड़मेर में महिलाओं को साथ जोड़ने की प्रयास करती थी, तो लोग उन्हें अपने घरों में एंट्री नहीं देते थे. जब लोग रूमा देवी को अपने घर में एंट्री नहीं देते थे तब उन्हें बहुत दुख होता था. लेकिन अपने आप को संभालते हुए रूमा देवी लगातार प्रयत्न करती रही क्योंकि उनको सबके सामने अपने आपको 1 दिन साबित करके दिखाना था. 1 दिन रूमा देवी की मेहनत रंग लाई
आज वह सफलता के नये आयाम जोड़ रही हैं. उनके एनजीओ ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के साथ करीब 30 हजार महिलाएं जुड़ी हैं. इसके अलावा उनकी टीम अब देश के अन्य राज्यों में भी महिलाओं को बेहतरीन शिल्प के जरिये लोकल प्रोडक्ट को क्वॉलिटी प्रॉडक्ट बनाने का गुर सिखा रही है.नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित रूमा देवी ने ईटीवी भारत से बातचीत कीउनकी सफलता की गूंज अमेरिका तक पहुंच चुकी है.
दादी से सीखा था शिल्प कला, हावर्ड यूनिवर्सिटी में बतौर गेस्ट गई –

रूमा देवी बताती हैं कि उन्हें अपनी शिल्प कला के बारे में बताने के लिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में बतौर गेस्ट बुलाया गया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि रूमा देवी सिर्फ आठवीं तक ही पढ़ी हैं और 17 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी.
कम उम्र में शादी होने के बाद भी रूमा देवी ने अपने सपने को जीना नहीं छोड़ा और लगातार कोशिश करती रही. उनकी कोशिश और मेहनत रंग लाई और वह लगातार अपने सपने को पूरा करने के लिए कदम बढ़ाने लगे. रूमा देवी के इस सफर में कठिनाइयां तो बहुत थी लेकिन वह कभी हार नहीं मानी और ना ही उनके कदम डगमगाए.
रूमा देवी ने अपनी दादी से हस्तशिल्प सीखा. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत दस महिलाओं के समूह के साथ की थी. इन महिलाओं ने चंदा इकट्ठा कर एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी थी. इनका हुनर देख ग्रामीण विकास में काम कर रहे एक सामाजिक संगठन ने उनकी मदद की.उन्होंने पहली बार 2010 में दिल्ली में अपने कपड़ों का एग्जीबिशन लगाया.
2016 में राजस्थान हेरिटेज वीक में Ruma Devi ने कपड़ों का पहला फैशन शो आयोजित किया. इसके बाद तो उनका कारवां और बढ़ता गया. उनकी उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने 2018 में उन्हें नारी शक्ति अवॉर्ड से नवाजा. अब वह राजस्थान सरकार के ग्रामीण विकास विभाग से राजीविका की ब्रांड एंबेसडर भी हैं.
Ruma Devi राजस्थान के बेटियों के लिए बनी मिसाल-
आज Ruma Devi राजस्थान के हर उस बेटी बहुओं के लिए एक मिसाल है जो अपने सपने पूरा करना चाहती है. रूमा देवी की कहानी हमें या बताती है कि मुश्किलें कितनी भी हो कभी हार नहीं मानी है और कोशिश करते रहिए. समाज के डर से या फिर परिवार के डर से अपने सपने को जीना मत छोड़िए. Ruma Devi आज सबके लिए मिसाल बन गई है और वह कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना भी सिखा रही हैं.
गांव की महिलाओं को खुद के दम पर जीना सिखाया –
Ruma Devi ने गांव के साथ-साथ राजस्थान के कई जिलों के महिलाओं को अपने दम पर जीना सिखाया है. उन्होंने इन महिलाओं को अपने सपने को पूरा करना सिखाया है. रूमा देवी अक्सर कहती थी आप औरत है लेकिन कमजोर नहीं. यही बात मान कर वह आगे बढ़ती गई और आज सफलता की कहानी लिख दी.